मीरा बाई भक्तिकाल की एक ऐसी स्त्री थीं जिन्होंने अपने प्रेम, त्याग और आध्यात्मिक समर्पण से नारी और भक्ति दोनों को नई पहचान दी। वे भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उनके लिए ही उन्होंने अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया। मीरा बाई ने समाज की बंदिशों, पति-पुत्र मोह, और राजसी वैभव को त्यागकर ईश्वर प्रेम की उस राह को चुना जो विरले ही चला करते हैं।
मीराबाई का सामान्य जीवन परिचय
मीरा बाई का जन्म एक राजपूत राजपरिवार में हुआ था। बचपन से ही वे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबी रहती थीं। उन्होंने एक साधु से कृष्ण की मूर्ति प्राप्त की और तभी से उन्हें अपना पति मान लिया। भोजराज से विवाह के बाद भी उनका मन सांसारिक जीवन में नहीं लगा। वे मंदिरों में जाकर कृष्ण भजन गाने लगीं जिससे राजपरिवार और समाज को आपत्ति हुई। पर मीरा ने किसी की नहीं सुनी। उन्होंने विष का प्याला पीया, सांप भेजे गए – पर वे बचती रहीं और अंत में सब कुछ त्याग कर तीर्थाटन करती हुई द्वारका पहुँच गईं, जहाँ उन्होंने श्रीकृष्ण की मूर्ति में लीन होकर शरीर त्याग दिया।
मीराबाई का जीवन परिचय | |
जन्म | लगभग 1498 ई. |
स्थान | मेड़ता, जिला नागौर (राजस्थान) |
पिता | रतनसिंह राठौर |
माता | वीर कुमारी |
पति | भोजराज (चित्तौड़ नरेश) |
मृत्यु | लगभग 1547 ई., द्वारका |
मीराबाई का साहित्यिक परिचय
मीरा बाई का साहित्य भक्तिकाल के सगुण भक्ति शाखा का हिस्सा है। उनके भजनों और पदों में आत्मा और परमात्मा के मिलन की उत्कंठा है। मीरा ने स्त्री के दृष्टिकोण से भक्ति को एक नए आयाम में प्रस्तुत किया।
भाषा और शैली:
- मुख्यतः ब्रजभाषा, साथ में राजस्थानी और गुजराती शब्दों का प्रयोग
- गीतात्मक शैली, सरल और भावप्रवण भाषा
- प्रमुख रस: श्रृंगार (वात्सल्य भाव) और भक्ति रस
- शैली: संवादात्मक, आत्माभिव्यंजक, मार्मिक
मीरा बाई की प्रमुख रचनाएं
1. मीरा पदावली
मीरा के सैकड़ों पद इस संग्रह में मिलते हैं। इनमें कृष्ण के प्रति उनका समर्पण, प्रेम और मिलन की तड़प स्पष्ट दिखाई देती है। कुछ प्रसिद्ध पद:
- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
- मै तो सांवरे के रंग राची
- मीरां के प्रभु गिरिधर नागर, सहज मिले अविनाशी
2. लोक भजन एवं लोक गाथाएं
मीरा की पदावलियाँ आज भी लोकगीतों और कीर्तन मंडलियों में गाई जाती हैं। उनके जीवन पर आधारित कई गाथाएं भी प्रचलित हैं जैसे — विष का प्याला, साँप और अंत में श्रीकृष्ण की मूर्ति में लीन होना।
भक्ति मार्ग और समाज से संघर्ष
मीरा बाई ने पितृसत्ता, धार्मिक पाखंड, और सामाजिक बंधनों का विरोध किया। उन्होंने खुलकर कृष्ण के प्रेम में जीने का साहस किया। उनके लिए धर्म का अर्थ प्रेम और आत्मा का परमात्मा में लीन होना था। वे भक्ति आंदोलन की स्त्री प्रतीक बनीं। उनका जीवन बताता है कि कैसे एक नारी भी भक्त, कवि, और समाज-सुधारक बन सकती है।
मीरा बाई के भजनों की विशेषताएं
विशेषता | विवरण |
भक्ति भाव | श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम और समर्पण |
विरह-वेदना | परमात्मा से मिलन की चाह |
नारी दृष्टिकोण | आत्मा और स्त्री के भावों की अद्वितीय प्रस्तुति |
लोकप्रियता | उनके पद आज भी मंदिरों, भजन मंडलियों में गाए जाते हैं |
भाषा | सरल, ब्रज मिश्रित लोकभाषा |
मीरा बाई ने प्रेम और भक्ति को ऐसा रूप दिया जो आज भी करोड़ों लोगों को ईश्वर से जोड़ता है। उनका जीवन एक अद्वितीय मिसाल है — जहाँ समाज, परंपरा और प्रतिष्ठा से ऊपर केवल प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण है मीरा बाई की रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में उसी भक्ति और उत्साह से गूंजती हैं। वे केवल एक कवयित्री नहीं थीं, वे एक आध्यात्मिक क्रांति थीं।