मरुस्थलीकरण (Desertification) से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification – UNCCD) को अपनाए जाने के तीन दशक बाद, 17 जून 2024 को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने सभी देशों और नागरिकों से भूमि के स्थायी प्रबंधन (Sustainable Land Management) के लिए समर्थन का आग्रह किया। यूएनसीसीडी (UNCCD) को 17 जून 1994 को पेरिस (Paris) में अपनाया गया था। इसी तिथि को हर वर्ष मरुस्थलीकरण और सूखा (Drought) से निपटने के लिए विश्व दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought) के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2024 में इस अवसर पर जर्मनी के बॉन (Bonn, Germany) में अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
मरुस्थलीकरण विषय UPSC IAS Exam के दृष्टिकोण से प्रारंभिक (Prelims) और मुख्य परीक्षा (Mains) दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इस UPSC Preparation लेख में हम मरुस्थलीकरण का अर्थ (Meaning of Desertification), इसके कारण (Causes of Desertification), प्रभाव (Impacts of Desertification) और भारत द्वारा मरुस्थलीकरण रोकने के लिए उठाए गए उपाय (Measures to Combat Desertification in India) पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
मरुस्थलीकरण: परिभाषा (Desertification: Definition)
मरुस्थलीकरण (Desertification) शुष्क (Arid), अर्ध-शुष्क (Semi-Arid) और शुष्क उप-आर्द्र (Dry Sub-Humid) क्षेत्रों में भूमि क्षरण (Land Degradation) की वह प्रक्रिया है, जो मुख्य रूप से वनों की कटाई (Deforestation), अत्यधिक चराई (Overgrazing), असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ (Unsustainable Agricultural Practices) तथा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण होती है। इसके परिणामस्वरूप भूमि की उत्पादकता (Productivity) में लगातार गिरावट आती है, जिससे वनस्पति आवरण (Vegetation Cover) का नुकसान, मिट्टी का कटाव (Soil Erosion) और जल गुणवत्ता में गिरावट (Decline in Water Quality) होती है, जो अंततः वैश्विक स्तर (Global Level) पर लाखों लोगों की अजीविका (Livelihood) और खाद्य सुरक्षा (Food Security) के लिए गंभीर खतरा बन जाती है।
दूसरे शब्दों में, मरुस्थलीकरण वह क्षरण प्रक्रिया (Degradation Process) है, जिसमें उपजाऊ भूमि अपनी जैव विविधता (Biodiversity), जल निकायों (Water Bodies), वनस्पति (Flora) और वन्य जीवन (Wildlife) को खोकर रेगिस्तान (Desert) में बदल जाती है। संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण से निपटने का सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification – UNCCD) के अनुसार, मरुस्थलीकरण को शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण के रूप में परिभाषित किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और मानवीय गतिविधियों (Human Activities) सहित विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप होता है।
यहाँ “भूमि” का तात्पर्य स्थलीय जैव उत्पादक प्रणाली (Terrestrial Bio-Productive System) से है, जबकि “भूमि क्षरण” का तात्पर्य जैविक या आर्थिक उत्पादकता (Biological or Economic Productivity) के ह्रास से है। यह प्रक्रिया वर्षा आधारित (Rainfed Cropland), सिंचित फसल भूमि (Irrigated Cropland) या चारागाह वन (Grazing Forest) की जटिलता को एक या एक से अधिक प्रक्रियाओं के संयोजन से प्रभावित करती है।
मरुस्थलीकरण के कारण (Causes of desertification)
मरुस्थलीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपजाऊ भूमि मरुस्थल बन जाती है, जो आमतौर पर जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप होती है। यहाँ कुछ प्राथमिक कारण दिए गए हैं:
जलवायु परिवर्तन (Climate change)
वैश्विक (Global) और क्षेत्रीय (Regional) जलवायु पैटर्न में परिवर्तन (Climate Pattern Change), जो अक्सर लंबे समय तक सूखा (Drought) लाते हैं, पानी की उपलब्धता (Water Availability) को गंभीर रूप से कम कर देते हैं। पानी की कमी (Water Scarcity) के कारण भूमि क्षरण (Land Degradation) की प्रक्रिया तेज हो जाती है, जिससे मरुस्थलीकरण (Desertification) बढ़ता है। लगातार बदलते जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभाव से न केवल कृषि उत्पादन (Agricultural Production) घटता है, बल्कि जैव विविधता (Biodiversity) और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि सूखे और Climate Variability से प्रभावित क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की रोकथाम (Combating Desertification) एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती बन जाती है।
वनों की कटाई (Deforestation)
वनों की कटाई (Deforestation), जब पर्याप्त पुनर्वनीकरण (Reforestation) या वनरोपण (Afforestation) के बिना की जाती है, तो यह मृदा अपरदन (Soil Erosion), मृदा उर्वरता की हानि (Loss of Soil Fertility) और वर्षा में कमी (Reduction in Rainfall) का कारण बनती है। ये सभी कारक मिलकर भूमि क्षरण (Land Degradation) और अंततः मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया को तेज करते हैं। पेड़ों की कमी (Loss of Tree Cover) न केवल जल चक्र (Water Cycle) को बाधित करती है, बल्कि जैव विविधता (Biodiversity) को भी प्रभावित करती है। इसलिए, Sustainable Forest Management और Afforestation Programs मरुस्थलीकरण की रोकथाम (Combating Desertification) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चराई (Grazing)
अत्यधिक चराई (Overgrazing), जो पशुओं (Livestock) द्वारा की जाती है, वनस्पति आवरण (Vegetation Cover) को नष्ट कर सकती है। जब पौधों की जड़ें (Plant Roots) कमजोर या खत्म हो जाती हैं, तो हवा (Wind) और पानी (Water) से मिट्टी का कटाव (Soil Erosion) होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यह प्रक्रिया भूमि क्षरण (Land Degradation) को तेज करती है और अंततः मरुस्थलीकरण (Desertification) में योगदान देती है। अत्यधिक चराई न केवल मृदा उर्वरता (Soil Fertility) को कम करती है बल्कि जैव विविधता (Biodiversity Loss) और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) को भी प्रभावित करती है। Sustainable Grazing Practices अपनाकर इस समस्या को कम किया जा सकता है।
असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ (Unsustainable Agricultural Practices)
असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ (Unsustainable Agricultural Practices) जैसे गहन खेती (Intensive Farming), एकल कृषि (Monocropping) यानी एक ही भूमि पर लगातार एक ही फसल (Same Crop Cultivation) उगाना, और अनुचित सिंचाई (Improper Irrigation) मिट्टी की गुणवत्ता (Soil Quality) को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। इन तरीकों से मृदा उर्वरता (Soil Fertility) घटती है, लवणीयकरण (Soil Salinization) और मृदा अपरदन (Soil Erosion) बढ़ता है, जिससे अंततः मरुस्थलीकरण (Desertification) होता है। अनुचित कृषि पद्धतियाँ (Improper Farming Methods) न केवल भूमि क्षरण (Land Degradation) को तेज करती हैं बल्कि जल संसाधन (Water Resources) और जैव विविधता (Biodiversity) पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। Sustainable Farming Practices इस समस्या का प्रभावी समाधान हैं।
शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास (Urbanization and infrastructure development)
शहरीकरण (Urbanization) और बुनियादी ढांचे का विकास (Infrastructure Development) तेजी से प्राकृतिक आवास (Natural Habitats) को नष्ट कर सकता है और वनस्पति आवरण (Vegetation Cover) को समाप्त कर सकता है। शहरों (Cities) और सड़कों (Roads), औद्योगिक क्षेत्रों (Industrial Areas) तथा अन्य निर्माण गतिविधियों (Construction Activities) के विस्तार से भूमि क्षरण (Land Degradation) और मरुस्थलीकरण (Desertification) की समस्या बढ़ती है। इससे जैव विविधता (Biodiversity Loss), मृदा अपरदन (Soil Erosion) और जल संसाधनों (Water Resources) पर दबाव बढ़ता है। अनियंत्रित शहरी विस्तार (Uncontrolled Urban Sprawl) न केवल पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) को बिगाड़ता है, बल्कि Climate Change और Global Warming के प्रभावों को भी तेज करता है।
मृदा अपरदन (Soil Erosion)
मृदा अपरदन (Soil Erosion), जिसमें वायु अपरदन (Wind Erosion) और जल अपरदन (Water Erosion) जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाएं शामिल हैं, मानवीय गतिविधियों (Human Activities) के कारण और भी तेज हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप ऊपरी मृदा (Topsoil) का क्षरण होता है, जो पौधों की वृद्धि (Plant Growth) और मृदा उर्वरता (Soil Fertility) के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब Topsoil Loss होता है, तो भूमि क्षरण (Land Degradation) और मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया तेज हो जाती है। यह न केवल कृषि उत्पादन (Agricultural Productivity) को प्रभावित करता है बल्कि जैव विविधता (Biodiversity) और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। Soil Conservation Practices अपनाना इसका समाधान है।
खराब जल प्रबंधन (Poor water management)
खराब जल प्रबंधन (Poor Water Management), जैसे कृषि (Agriculture), उद्योग (Industry) और शहरी उपयोग (Urban Use) के लिए पानी का अत्यधिक दोहन (Overexploitation of Water), भूजल स्तर (Groundwater Level) को तेजी से कम कर देता है। इससे सिंचाई (Irrigation) के लिए उपलब्ध पानी घटता है और भूमि (Land) सूखने लगती है, जिससे भूमि क्षरण (Land Degradation) और मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया तेज हो जाती है। अत्यधिक जल दोहन (Excessive Water Withdrawal) न केवल कृषि उत्पादन (Agricultural Productivity) को प्रभावित करता है बल्कि जल संसाधन (Water Resources), जैव विविधता (Biodiversity) और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। Sustainable Water Management Practices अपनाना इसका प्रभावी समाधान है।
लवणीकरण (Salinization)
लवणीकरण (Soil Salinization) अनुचित सिंचाई पद्धतियों (Improper Irrigation Practices) के कारण होता है, जिसमें मिट्टी (Soil) में लवणों का संचय (Salt Accumulation) बढ़ जाता है। इससे मिट्टी बंजर (Soil Infertility) हो जाती है और पौधों की वृद्धि (Plant Growth) के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable) बन जाती है। Soil Salinity की समस्या भूमि क्षरण (Land Degradation) और अंततः मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया को तेज करती है। यह न केवल कृषि उत्पादन (Agricultural Productivity) को घटाती है बल्कि जैव विविधता (Biodiversity) और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) को भी प्रभावित करती है। Sustainable Irrigation Techniques और Soil Management Practices अपनाकर लवणीकरण की समस्या को कम किया जा सकता है।
खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ (Mining and industrial activities)
खनन (Mining) और औद्योगिक गतिविधियाँ (Industrial Activities) सीधे भूमि की सतह (Land Surface) को नष्ट कर सकती हैं और प्रदूषण (Pollution) में योगदान देती हैं। इन गतिविधियों से मृदा गुणवत्ता (Soil Quality) और जल गुणवत्ता (Water Quality) दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे भूमि क्षरण (Land Degradation) और अंततः मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया तेज हो जाती है। Industrial Pollution और Mining Operations न केवल जैव विविधता (Biodiversity) को प्रभावित करते हैं बल्कि पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) को भी बिगाड़ते हैं। Sustainable Mining Practices और Pollution Control Measures अपनाकर इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे पर्यावरणीय क्षति रोकी जा सकती है।
भूमि उपयोग पैटर्न में परिवर्तन (Change in land use pattern)
भूमि उपयोग पैटर्न में परिवर्तन (Change in Land Use Patterns), जैसे वनों (Forests) और आर्द्रभूमि (Wetlands) को कृषि भूमि (Agricultural Land) या शहरी क्षेत्रों (Urban Areas) में बदलना, गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन (Ecological Imbalance) और भूमि क्षरण (Land Degradation) का कारण बन सकता है। इस प्रकार का Land Conversion न केवल जैव विविधता (Biodiversity Loss) को बढ़ाता है, बल्कि मरुस्थलीकरण (Desertification) की प्रक्रिया को भी तेज करता है। Natural Habitats Destruction और Urban Expansion के कारण मृदा उर्वरता (Soil Fertility) घटती है और पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) बिगड़ता है। Sustainable Land Use Planning अपनाकर इन नकारात्मक प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मरुस्थलीकरण के परिणाम (Consequences of desertification)
मरुस्थलीकरण (Desertification) के परिणाम अत्यंत गंभीर होते हैं। इसमें कृषि योग्य भूमि का नुकसान (Loss of Arable Land) शामिल है, जो खाद्य सुरक्षा (Food Security) और कृषि उत्पादकता (Agricultural Productivity) को खतरे में डालता है। इससे जैव विविधता (Biodiversity Loss) घटती है, और धूल भरी आंधी (Dust Storms) जैसी प्राकृतिक आपदाओं (Natural Disasters) के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है। Desertification Impacts में गरीबी (Poverty), पलायन (Migration) और अन्य सामाजिक-आर्थिक समस्याएं (Socio-Economic Problems) भी शामिल हैं। यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरणीय संतुलन (Environmental Balance) को प्रभावित करती है बल्कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों को भी तेज करती है, जिससे वैश्विक स्तर पर स्थायी विकास (Sustainable Development) को खतरा होता है।
आर्थिक प्रभाव (Economic impact)
आर्थिक प्रभाव (Economic Impact) के रूप में, कृषि उत्पादकता में कमी (Decline in Agricultural Productivity) से बड़ी आबादी की अजीविका (Livelihood) प्रभावित होती है। वैश्विक जनसंख्या वृद्धि (Global Population Growth) से भूमि (Land) पर दबाव बढ़ता है और खाद्यान्न की कमी (Food Shortage) की आशंका बढ़ जाती है। इसका असर गरीबी (Poverty) और अर्थव्यवस्था की उत्पादकता (Economic Productivity) में गिरावट के रूप में दिखता है। UNCCD के अनुसार, विकासशील देशों (Developing Countries) में 1 बिलियन से अधिक युवा (Youth) भूमि और प्राकृतिक संसाधनों (Land & Natural Resources) पर निर्भर हैं। यदि इन युवाओं को भूमि पुनर्स्थापन कार्य (Land Restoration Work) में लगाया जाए, तो अगले 15 वर्षों में लगभग 600 मिलियन नौकरियाँ (Jobs) पैदा हो सकती हैं, जो आर्थिक विकास (Economic Growth) और पर्यावरणीय स्थिरता (Environmental Sustainability) में योगदान देंगी।
सामाजिक प्रभाव (Social Impact of Desertification)
मरुस्थलीकरण (Desertification) से अकाल (Famine), गरीबी (Poverty) और सामाजिक संघर्ष (Social Conflicts) बढ़ते हैं। यूएनसीसीडी (UNCCD) के अनुसार, दुनिया की 40% भूमि (Land Degradation) और लगभग आधी आबादी प्रभावित है। सबसे अधिक असर उन पर होता है जो इसे कम से कम झेल सकते हैं, जैसे स्वदेशी समुदाय (Indigenous Communities), ग्रामीण परिवार (Rural Families), छोटे किसान (Small Farmers) और विशेष रूप से युवा (Youth) व महिलाएँ (Women)। मरुस्थलीकरण नियंत्रण (Desertification Control) और सतत विकास (Sustainable Development) के प्रयास इन कमजोर वर्गों के जीवन स्तर सुधारने में महत्वपूर्ण हैं। भूमि संरक्षण (Land Conservation) ही दीर्घकालिक समाधान है।
राजनीतिक प्रभाव (Political Impact of Desertification)
मरुस्थलीकरण (Desertification) से राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability) बढ़ती है, विशेषकर विकासशील देशों (Developing Countries) में। यूएनसीसीडी (UNCCD) के आंकड़ों के अनुसार, अफ्रीका (Africa) तथा पूर्वी व मध्य एशिया (Eastern & Central Asia) मरुस्थलीकरण से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं। यही क्षेत्र राजनीतिक संघर्ष (Political Conflicts), सामाजिक अशांति (Social Unrest) और संसाधनों पर विवाद (Resource Conflicts) के केंद्र बनते हैं। भूमि क्षरण (Land Degradation) से कृषि उत्पादन घटता है, जिससे खाद्य सुरक्षा (Food Security) और शासन व्यवस्था (Governance) पर दबाव बढ़ता है। सतत नीतियाँ (Sustainable Policies) ही दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change and Desertification)
भूमि क्षरण (Land Degradation) से मिट्टी की कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) अवशोषण क्षमता घट जाती है। क्षरित भूमि (Degraded Land) वायुमंडल से कार्बन सोखने की बजाय संग्रहित कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) तेज होता है। यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions) को बढ़ाकर मौसम पैटर्न (Weather Patterns) में असंतुलन लाती है। मरुस्थलीकरण नियंत्रण (Desertification Control) और भूमि पुनर्स्थापन (Land Restoration) के उपाय कार्बन चक्र (Carbon Cycle) को संतुलित कर जलवायु स्थिरता (Climate Stability) बनाए रखने में सहायक हैं।
पानी की कमी (Water Scarcity due to Desertification)
भूमि क्षरण (Land Degradation) से सतही जल संसाधन (Surface Water Resources) और भूजल संसाधन (Groundwater Resources) दोनों की मात्रा और गुणवत्ता घटती है। मरुस्थलीकरण (Desertification) वर्षा जल अवशोषण (Rainwater Absorption) को कम करता है, जिससे जल पुनर्भरण (Water Recharge) घटता है और नदियों, झीलों व कुओं का जलस्तर (Water Table) नीचे जाता है। इसका असर कृषि (Agriculture), पेयजल आपूर्ति (Drinking Water Supply) और पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) पर पड़ता है। पानी की कमी (Water Scarcity) से खाद्य उत्पादन घटता है और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ (Socio-economic Challenges) बढ़ती हैं, इसलिए जल संरक्षण (Water Conservation) और सतत प्रबंधन (Sustainable Management) आवश्यक है।
पारिस्थितिक खतरा (Ecological Threat of Desertification)
मरुस्थलीकरण (Desertification) जैव विविधता (Biodiversity) के लिए गंभीर खतरा है। यह क्षेत्र की वनस्पतियों (Flora) और जीव-जंतुओं (Fauna) दोनों को प्रभावित करता है। भूमि क्षरण (Land Degradation) से प्राकृतिक आवास (Natural Habitat) नष्ट होते हैं, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्ति (Extinction) के कगार पर पहुँच जाती हैं। पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का संतुलन बिगड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप परागण (Pollination), मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) और जल चक्र (Water Cycle) प्रभावित होते हैं। जैव विविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation) और सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management) इस खतरे को कम करने के लिए अनिवार्य हैं।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Impact of Desertification on Human Health)
मरुस्थलीकरण (Desertification) से भोजन (Food) और पानी (Water) की आपूर्ति घटती है, जिससे कुपोषण (Malnutrition) बढ़ता है। स्वच्छ पानी (Clean Water) और उचित स्वच्छता (Sanitation) की कमी के कारण खाद्य व जल जनित रोग (Food & Water-borne Diseases) जैसे डायरिया (Diarrhea), हैजा (Cholera) और टाइफाइड (Typhoid) फैलते हैं। भूमि क्षरण (Land Degradation) से कृषि उत्पादन घटने पर खाद्य सुरक्षा (Food Security) खतरे में पड़ती है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के साथ मिलकर यह स्वास्थ्य सेवाओं (Healthcare Systems) पर दबाव बढ़ाता है। सतत संसाधन प्रबंधन (Sustainable Resource Management) और स्वच्छ जल उपलब्धता (Safe Water Access) इस समस्या के समाधान में अहम हैं।
मरुस्थलीकरण: रोकथाम के उपाय (Desertification Prevention Measures)
मरुस्थलीकरण (Desertification) को रोकना सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management), मृदा संरक्षण (Soil Conservation) और जल संसाधन प्रबंधन (Water Resource Management) का संयुक्त प्रयास है। यह कृषि उत्पादन (Agricultural Productivity), जैव विविधता (Biodiversity) और जलवायु स्थिरता (Climate Stability) बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
मुख्य उपाय:
- वनरोपण (Afforestation), कृषि वानिकी (Agroforestry) और मृदा संरक्षण तकनीक अपनाना।
- बेहतर सिंचाई (Efficient Irrigation), फसल चक्र (Crop Rotation) और नियंत्रित चराई (Controlled Grazing)।
- भूमि व जल प्रबंधन का एकीकृत मॉडल (Integrated Land & Water Management)।
- वनस्पति आवरण (Vegetation Cover) की रक्षा करना।
- पारंपरिक प्रथाओं व आधुनिक तकनीक का संयोजन।
- स्थानीय समुदाय (Local Communities) को प्रशिक्षण व संसाधन उपलब्ध कराना।
- वैकल्पिक आजीविका (Alternative Livelihoods) व आर्थिक अवसरों का सृजन।
भारत में मरुस्थलीकरण की स्थिति (Desertification in India)
भारत (India) में मरुस्थलीकरण (Desertification) एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती है, जिससे लगभग एक-तिहाई भूभाग (One-third Land Area) प्रभावित है। इसरो (ISRO) के अनुसार, 97.85 मिलियन हेक्टेयर भूमि यानी 29.3% क्षेत्र भूमि क्षरण (Land Degradation) से गुजर रहा है। मुख्य कारण हैं—जनसंख्या दबाव (Population Pressure), वनों की कटाई (Deforestation), अत्यधिक खेती (Over-cultivation) और जलवायु परिवर्तन (Climate Change)।
मुख्य तथ्य:
- सबसे प्रभावित राज्य: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना।
- संवेदनशील क्षेत्र: शुष्क (Arid), अर्ध-शुष्क (Semi-arid) और शुष्क उप-आर्द्र (Dry Sub-humid) क्षेत्र।
- खतरा: कृषि उत्पादन (Agricultural Production), जल संसाधन (Water Resources) और जैव विविधता (Biodiversity) पर नकारात्मक असर।
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए भारत के प्रयास (India’s Measures to Combat Desertification)
भारत (India) ने मरुस्थलीकरण (Desertification) और भूमि क्षरण (Land Degradation) से निपटने के लिए कई नीतियाँ, कार्यक्रम और योजनाएँ लागू की हैं। इन प्रयासों में राष्ट्रीय कार्य कार्यक्रम (NAPCD), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन (Integrated Watershed Management), वनरोपण (Afforestation), मृदा एवं जल संरक्षण (Soil & Water Conservation) और संस्थागत ढाँचे (Institutional Frameworks) शामिल हैं। इनका उद्देश्य सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management), जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency) और सामुदायिक भागीदारी (Community Participation) को बढ़ावा देना है।
पहल / कार्यक्रम (Initiative) | मुख्य उद्देश्य (Main Objective) | प्रमुख उपाय (Key Measures) |
राष्ट्रीय कार्य कार्यक्रम (NAPCD) | मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण को रोकना | सतत भूमि प्रबंधन, सामुदायिक भागीदारी, नीतिगत ढाँचा मजबूत करना |
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) | जल उपयोग दक्षता बढ़ाना | सूक्ष्म सिंचाई, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम |
एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन | क्षरित भूमि बहाली | मिट्टी व जल संरक्षण, वनस्पति आवरण बढ़ाना |
वनरोपण व हरित भारत मिशन | वन क्षेत्र और कार्बन अवशोषण बढ़ाना | वृक्षारोपण, पुनर्वनरोपण, आजीविका अवसर |
मृदा एवं जल संरक्षण कार्यक्रम | भूमि उत्पादकता बनाए रखना | वर्षा जल संचयन, सतत कृषि तकनीक |
संस्थागत ढाँचे | समन्वय व निगरानी | राष्ट्रीय वर्षा आधारित क्षेत्र प्राधिकरण, संसाधन संरक्षण मिशन |
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए वैश्विक प्रयास (Global Efforts to Combat Desertification)
वैश्विक स्तर पर मरुस्थलीकरण (Desertification) और भूमि क्षरण (Land Degradation) से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) नेतृत्व करता है। इसमें ग्रेट ग्रीन वॉल (Great Green Wall), भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्य (LDN Goals), वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) जैसे पहल शामिल हैं। ये प्रयास सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management), अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International Cooperation), वित्तीय सहायता (Financial Mechanisms) और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer) पर केंद्रित हैं।
वैश्विक पहल (Global Initiative) | मुख्य उद्देश्य (Main Objective) | प्रमुख उपाय (Key Measures) |
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) | मरुस्थलीकरण व भूमि क्षरण से निपटना | नीतियाँ, रणनीतियाँ, प्रभावित क्षेत्रों में जीवन स्थितियों में सुधार |
ग्रेट ग्रीन वॉल पहल | सहारा व साहेल में वन पट्टी निर्माण | 15 किमी चौड़ी, 7,775 किमी लंबी हरित पट्टी, भूमि पुनर्स्थापन |
भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्य (LDN Goals) | 2030 तक भूमि क्षरण व पुनर्स्थापन में संतुलन | सतत भूमि प्रबंधन, वैश्विक सहयोग |
वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) | परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण | टिकाऊ भूमि उपयोग, मरुस्थलीकरण रोकथाम |
क्षेत्रीय कार्य कार्यक्रम | क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग | ज्ञान साझा करना, संयुक्त परियोजनाएँ, संसाधन जुटाना |
विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा निवारण दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought)
संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने 1994 में इस दिवस की स्थापना की, जिसे हर साल 17 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण (Desertification), भूमि क्षरण (Land Degradation) और सूखा (Drought) पर वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management) को बढ़ावा देना है।
विवरण (Details) | जानकारी (Information) |
स्थापना वर्ष (Year of Establishment) | 1994 |
घोषित करने वाली संस्था (Declared By) | संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) |
आयोजन तिथि (Date of Observance) | 17 जून |
मुख्य उद्देश्य (Main Objective) | जागरूकता बढ़ाना, कार्रवाई को प्रोत्साहित करना, वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना |
2023 की थीम (Theme 2023) | “मरुस्थलीकरण – हमारे साझा घर के लिए खतरा” |
2024 की थीम (Theme 2024) | “भूमि के लिए सब एक हो जाओ!” |
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